सोमवार, 1 जून 2009

अगर नोट 1 हजार का होता तो.....

राहुल कुमार
अंदर तक हिला देने वाली और बहुत से मिथक तोड़ देने वाली इस घटना में शामिल होने का जितना मुझे दुख हैै उससे कहीं अधिक रोष। घटना के बाद में देर तक यही सोचता रहा कि अगर नोट 1 हजार को होता तो क्या ऐसे हालात बनते ? पत्रकार प्रेस कांफ्रंेस का बहिष्कार करके जाते या फिर चुपचाप अंटी में लिफाफा दबाकर लंच कर चल देते। पर इस वाकया से एक बात जरूर साफ हो गई कि पत्रकारिता की औकात नेताओं के नजर में क्या रह गई है। वह भी ऐसे टूच्चे नेताओं की नजर में जो एक जिले या प्रदेश की राजनीत करते हैं।
हुआ यूं कि 1 जून को उप्र महिला कांग्रेस की नवनियुक्त महासचिव जाहिरा जैदी ने नोएडा में प्रेस वार्ता की। प्रेस वार्ता का सारा जिम्मा कांग्रेस से लोकसभा के प्रत्याशी रहे रमेश चंद्र तोमर व अन्य कथित नेताआंे पर था। वार्ता में बड़ी बड़ी बातें कहकर, खुद को देशभक्त बताकर जैदी ने प्रेस रिलीज को लिफाफे में रखकर बांटना शुरू कर दिया। पत्रकारों ने जैसे ही लिफाफा खोला उसमें सौ का नोट भी निकला। जो निश्चित रूप से पत्रकारों को रिश्वत के तौर पर था। ताकी वार्ता का कवरेज बेहतर हो। लेकिन पत्रकारों ने सौ का नोट देखकर आपा खो दिया और वार्ता का बहिष्कार कर दिया। नेताओं के होश उड़ गए। मांफी मांगते फिरे और खूब मिन्नतें कीं। लेकिन कुछ पत्रकार मान गए कुछ चल दिए।
सोचता हूं कि आखिर इन कथित नेताओं के मन में पत्रकारों की औकात क्या रह गई है ? बताया गया कि किन्हीं दलाल पत्रकारों ने उनके शुभ चिंतक होेने और अच्छा कवरेज कराने की बात कहकर उन्हें यह सलाह दी थी कि लिफाफे में 100 रुपए रख कर दे देना। नेता अखबारों और चैनल के कार्यालय में फोन करते रहे और खुद पत्रकारों की सलाह पर ऐसा कृत्य करने की बात कहते रहे।
इस घटना के बाद से मैं बड़ा आहत हूं। पत्रकारिता को लेकर जो मिथक और सपने मैंने गढ़े थे उन्हें बड़ा धक्का लगा है। खासकर धक्का उस समय घाव बन गया जब नेताओं के खिलाफ खबर न छाप कर सीधे और सही रूप मंे लिखने की बात सामने आई। मैं सोच रहा था कि खबर मुख्य पृष्ठ पर जाएगी और जाहिरा जैदी की पत्रकारिता का अपमान करने की बात पर महासचिव के पद से छुट्टी हो जाएगी। अपने हाल ही में शुरू हुए पत्रकारिता जीवन में इसतरह का यह पहला मौका था। गंदी हो चुकी राजनीति का यह कार्य सहनशीलता से बाहर है। लेकिन पत्रकारों की यह औकात आखिर बनाई किसने है ? इतना बड़ा अपमान वहां मौजूद कुछ अखबारों के संपादक और बड़े रिपोर्टर हंसते हंसते सह गए। हां मेरी उम्र के कुछ नए पत्रकारों और फोटोग्राफर ने विरोध किया और नेताओं के बुलाने का पुरजोर आग्रह करने के बावजूद वापस नहीं गए।
पत्रकारिता का इसतरह से पतन देखकर मन अंदर से बहुत भारी हो गया। और लगा जैसे पत्रकारिता की धार पैसों ने कुंद कर दी। पिछले एक साल से नोएडा की पत्रकारिता की छवि देखकर अब महसूस करता हंू कि अगर नोट 1 हजार का होता तो क्या जो पत्रकार वापस आ गए या जो विरोध हुआ वह भी होता क्या ? चुनाव का मौका हो या फिर छोटा मोटा लाभ लेने की स्थिति खबरों से हमेशा ही तो समझौता होता है। लोकसभा चुनाव में पत्रकारों की हैसियत भी तो इसी बात से नापी गई थी कि किसने कितना पैसा पार्टियों से कमा पाया। जिनसे ज्यादा पाया वह ज्यादा बड़ा पत्रकार।
अफसोस बड़े पत्रकारों की सौदेबाजी में हम जैसे रिपोर्टर की इज्जत हर कदम पर जार जार होती है। टूच्चे नेताओं में 100 रुपए देने का साहस तभी आया जब बड़े पत्रकार बड़े नेताओं से करोड़ों का सौदा करते हैं। अकसर पत्रकारिता को वैश्या कहे जाने का रिवाज खुर्शियों में आता रहा है लेकिन कुछ दलालों ने इसे वैश्या से भी गया गुजरा बनाकर छिनाल का रूप दे दिया है। क्योंकि वैश्या तो मजबूरी में पेट पालने के लिए जिस्म का सौदा करती है। पर छिनाल अपने आनंद के लिए कई लोगों के साथ हमबिस्तर होने में सुकून पाती है। ऐसी ही हालत पत्रकारिता की होती जा रही है। जो अलग अलग लोगों के फायदे के लिए धनाढ्यों की रखैल बनकर रह गई है। पैसा दो कुछ भी छपवा लो, रात को पत्रकारों को दारू पिलाओ और कुछ भी छपवा लो।
लेकिन पत्रकारिता का यह रूप कितने समय तक उसे जीवित रख सकता है। यह वाकया जरूर एक जिले का हो लेकिन यह हालत बड़े स्तर पर और भी भयावह है। पत्रकारिता के मायने खो गए हैं। एसी और लग्जरी गाड़ियों में सफर करने वाले संपादक अभी भी सावधान नहीं हैं। राज्यसभा में जाने का सपना संजोये बैठे यह संपादक आखिर इस सौ रुपए की जलालत को नहीं झेल रहे हैं। वह इस बात में फूले नहीं समाते कि अमुख नेता से उनके अच्छे संबंध हैं। मेरा नेताओं को दोष देने का मन कतई नहीं हो रहा है। क्योंकि बिकाउ तो हमारी ही बिरादरी हो गई है। और जो चीज बिकाउ हो उसे कौन नहीं खरीदना चाहता है। पैसा है तो खरीद रहे हैं। लेकिन दुख इस बात है कि बाहर से बेहतर छवि परोसने वाली पत्रकारिता किस स्तर तक गिर गई है। और ऐसे ही हालात रहे तो और किस स्तर तक गिरेगी....?