राहुल कुमारलगातार आ रहे आॅफरों को कई बार ठुकराने के बाद, न जाने क्यों इस बार नाइट क्बल का रूख कर ही लिया। देखें तो भला रात की सुकून भरी नींद गवाने और उछले-कूदते, बांहों में बांहें डालने के पीछे लोगों का फलसफा क्या हैै। सो, दो साथियों के प्रवेश को एक फोन घुमाकर पक्का कर लिया। अकेले जाना मुनासिब न समझा। अपुन खांटी देसी आदमी, उस पर खराब मैनेजर। लेकिन अफसोस की बाकी दो भी अपुन जैसे ही। पर अच्छे मैनेजर। अब जाना है तो जाना है। मन बन गया है। और फिर तय कर दिया रात में मदहोश होती जवानियों के थिरकते कदमों से कदम मिलाने का समय। रात 11 बजे।
दोनों भाई लोग अपनी तरह अर्थशास्त्र में कमजोर। उम्र में बड़े। मुझसे खर्च भी नहीं करा सकते। एक की पगार हाल ही में मिली है। प्रवेश मुफ्त है। लेकिन पीने का खर्चा बहुत। पूरी पगार जेब में रख ली है। बहुत कुछ पीकर गए हैं। ताकी क्लब में और न पीना पड़े। लेकिन पीना तो पड़ेगी ही। रात जवान होगी और शराब उतरती-चढ़ती रहेगी। एक ने बहुत पी है। मैंने उससे कम और एक ने मुझसे भी कम। क्योंकि उसकी गर्लफ्रैंड का फोन आ जाता है। वह डरता है। अपनी अभी-अभी जुदा हो गई। टेंशन खत्म। पहले फोन आता था। तब पीते भी नहीं थे।
क्लब में जोड़े के साथ प्रवेश है। लेकिन अपनी चलती है। तीन का जोड़ा है। वो भी मस्ती में। भाईयों के साथ प्रवेश करते हैं। मुंबई से बैंड आया है। बहुत पाॅपुलर है। कानों में डीजे की धमक के अलावा कुछ सुनाई नहीं दे रहा है। सारा शरीर लगभग डीजे बन गया है। पूरा डांस फ्लोर थिरक रहा है। हम भी। सामने बार काउंटर है। जो भी पीना हो, पैसे दो और पिओ। पटियाला, टकीला, काॅकटेल, बीयर, बिस्की, रम, वोदका कुछ भी। लड़कियों के हाथों में बीयर की बोतल है। कुछ काउंटर पर टकीले पे टकीला पिये जा रही हैं। वोदका उन्हें खूब पसंद आ रही है। सब पुरुषों मित्रों के साथ हैं। बांहों में बांहे और लगभग सांसो में सांसे डाले हुए। चेहरे से खानदानी कम, रहीस ज्यादा हैं। बहुत कुछ पहना है फिर भी बहुत कुछ दिख रहा हैै। भाई इशारा करता है। अपुन पहले से ही देख रहे हैं।
रात जैसे-जैसे बढ़ती है। हरकतें भी बढ़ती जा रही हैं। पहले महज डांस हो रहा था। लेकिन अब और भी बहुत कुछ। जिन्होंने क्बल में ही पी है, वह अब बहकने लगे हैं। इसलिए हरकतें भी बढ़ गई हंै। पास वाला जोड़ा परेशान है। लड़का बार-बार किस लेना चाहता है। लड़की चेहरा फेर लेती है। बांहों में बांहें हैं पर होंठ.....जाने दीजिये। वह नखरे कर रही है। शायद बाद में किस देगी। देना नहीं होता तो रात को क्लब में ही क्यों आती। खैर।
भाई लोग पूरी बाराती स्टाइल में फ्लोर पर हाथ-पैर फड़फड़ाने लगे हैं। अपुन को थोड़ा बहुत थिरकना आता है। फ्लोर पर भीड़ बहुत है। सब नशे में चूर हैं। पता नहीं कौन किसके साथ आया है। जो मिलता है, उसी के साथ डांस पर चांस मारा जा रहा है। कौन कहेगा अपुन बगैर गर्लफ्रैंड के आए हैं। आसपास कई गोपियां कमर मटका रही हैं। कई बार स्पर्श का आनंद भी मिल जाता है।
करीब एक घंटे बाद एक जोड़ा थक पर सोफे पर लेट जाता है। अपनी पार्टी भी थक गई है। सोफे पर बैठने पहुंच जाते हैं। अंधेरा काफी है। फ्लोर पर चमक रही लाल पीली बत्ती से कुछ कुछ दिखता है। देखकर लगा शायद अब रात पूरी तरह जवान हुई है। कई जोड़े हैं वहां। पर हम वहां से निकल लेते हैं। कुर्सियों पर बैठ जाते हैं। भाई सिगरेट का पूरा पैकेट लेकर आया है। सुलगा लेते हैं।
कुछ सुस्ताते हैं। भाई इशारा करता है। क्योंकि कान मुंह के कितने भी पास हो आवाज सुनाई नहीं दे रही है। तीन लड़कियां हमारी तरह अकेली खड़ी हैं। शायद पार्टनर की तलाश में हैं। दोस्त आॅफर करने की बात करता है। अपुन को डर लगता है। साफ इंकार कर देते हैं। वह कुछ पास आतीं हैं। मुस्कुराती हैं। कुर्सियों पर बैठ जाती हैं। उनके हाथ में भी सिगरेट हैं। भाई डांस पर चांस मारने का चांस उन्हें देता है। वह राजी हो जाती हैं। मस्ती दुगुनी हो चली है। भाई वेस्ट आॅफ लक वाला अंगूठा दिखाता है। अब अपुन भी एक के साथ फ्लोर पर पहुंच जाते हैं।
कदमों के साथ कदम मिल गए हैं। मुझे घबराहट है। वह बिंदास है। मैं उसके कान में चिल्लाता हूं हाॅस्टल मंे रहती हो क्या ? वह डांस करते करते सिर हिला देती है। तभी जादू है नशा है..... बज उठता है। वह करीब आ जाती है। कब उसका हाथ मेरी कमर में आ जाता है पता नहीं। और मेरा भी। यह भी पता नहीं। सोणी केे नखरे सोणे लगदे.... बजते ही वह दूर हो गई है। पूरे जोश के साथ नाचने लगी है। अपुन फ्लोर छोड़कर कुर्सियों पर आ बैठते हैं। भाई लोग मस्त हैं। मेरा ख्याल उन्हें अब नहीं है।मैं उन्हें बुलाता हूं। और उपर वाले फ्लोर पर जाने के लिए कहता हूं। तीनों जाते हैं लेकिन बड़े कद वाला बाउंसर खड़ा है। वह रोक देता है। कहता है उपर कुछ नहीं है। जाना मना है। डांस नीचे ही करो। हम नादान नहीं हैं। जानते हैं उपर क्या है पर जाना भी नहीं चाहते। क्योंकि यह सब जानते हैं।
मन पूरी तरह उब चुका है। दम घुटने लगा है। ज्यादातर जोड़ियां थक कर बैठ गई हैं। कुछ लेट गए हंै। फ्लोर पर एक्का दुक्का ही बचे हैं। रात के तीन बज चुके हैं। अपना अब वापस चलने का मन है। तीनों राजी भी हैं। साथ वाली लड़कियां कहां गई पता नहीं। शायद किसी और के साथ हो गई होगी। लेकिन उनकी इस फितरत का बुरा नहीं लगता। जैसा कि उसका......खैर जाने दीजिये।
वापसी बेहद भारी है। दिमाग फट रहा है। लुत्फ क्या मिला पता नहीं लेकिन रात व्यर्थ जाने का दुख है। शुक्र है आने वाला दिन रविवार है। और काम कम है।
गाड़ी स्टार्ट करने से पहले दोस्तों से कहता हूं। यह क्या रिश्ता था। बांहों में बांहें थी और साथ में डांस। कुछ पल बेहद करीब। लेकिन अब कुछ नहीं। जैसे न अपने होने का कोई स्वाभिमान, न कोई अस्तित्व और न किसी तरह की कोई भावना। एक पल साथ और दूसरे पल में कोई नाता नहीं। तभी दोस्त चपत मारता है। ठीक वैसे जैसे किसी बेवकूफ को मारी जाती है। वह कहता है यह तो एक रात का साथ था। लोग सालों का छोड़ जाते हैं। तभी उसका ख्याल आता है। फिर कहता हूं। तो क्या अंतर है, इस रिश्ते में और उस रिश्ते में जो सालों रहा। दोनों रिश्तों का नतीजा एक है तो फितरत भी एक सी ही होगी। दोस्त हामी भर देता है। और कहता है कोई अंतर नहीं। सब एक है। लेकिन मेरा मन यह मानने को तैयार नहीं है। कम से कम अपनी जानिब तो बिलकुल नहीं।
रात भर नाचने के बाद भी मन बेहद उदास है। तभी दोस्त कहता है पगार में से साढ़े तीन हजार का बट्टा लग गया। मैं मन ही मन कसम खाता हूं। आज के बाद न नाइट क्लब और न ही शराब।