tag:blogger.com,1999:blog-8124691886035494974.post5043966766226476440..comments2023-05-11T13:08:31.242+05:30Comments on देखा जाएगा: ये जूता चलना चाहिएराहुल यादवhttp://www.blogger.com/profile/17584554814410271031noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-8124691886035494974.post-70536965780923816992009-05-08T22:11:00.000+05:302009-05-08T22:11:00.000+05:30सच कहा सरजी हमारे समाज में बढ़ती अनीति के खिलाफ लड़न...सच कहा सरजी हमारे समाज में बढ़ती अनीति के खिलाफ लड़ने का एक ही रास्ता बचा है। इसलिए जूता चलना ही चाहिए। अपने अधिकार के लिए गांधीगीरि करने पर लोग मूर्ख समझते है। मूर्ख बनने से अच्छा जूता चलाना इसलिए जूता चलना ही चाहिए..............www.जीवन के अनुभवhttps://www.blogger.com/profile/06243096484361372919noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8124691886035494974.post-41118581216689100152009-04-30T11:54:00.000+05:302009-04-30T11:54:00.000+05:30राहुल संवाद का माध्यम अगर जूता ही है तो कलम की बजा...राहुल संवाद का माध्यम अगर जूता ही है तो कलम की बजाय जेब पर जूता टांग कर चलने में कोई बुराई है क्या तुम्हारी नज़र में? मित्र, संवाद का माध्यम भाषा ही बना रहे तो ठीक है। जूता चलने से क्या पाड़ित सिखों को न्याय मिलेगा। जेसिका लाल से लेकर कई हत्याओं में देखने को मिला कि 'अरबन' समाज ने लामबंद होकर मोमबत्तियां जलाईं। मीडिया ने अपने स्तर पर ट्रायल कर डाला। नतीजा दोषियों को सज़ा। लेकिन क्या किसी दंगे औक जनसंहार के विरोध में कभी ऐसी प्रतिक्रिया समाज ने दिखाई है? अगर दिखाई भई है तो पूरे मनोयोग से प्रयास किया है? यहां जूता चलाने की नहीं वरन लोकतांत्रिक नियमों के साथ ही विरोध दर्ज करने की जरूरत है। न्याय देर सवेर खुद ही मिल जाएगा। रिश्वत दी जाती है ली नहीं जाती। बुरी रुढियों और परंपराओं के विरोध मुखर होने की जरूरत है जूता चलाने की नहीं।मधुकर राजपूतhttps://www.blogger.com/profile/18175900220847414275noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8124691886035494974.post-16499378195918452842009-04-23T16:53:00.000+05:302009-04-23T16:53:00.000+05:30सर जी बिलकुल ठीक बात की है ये जूता चलना ही चाहिए व...सर जी बिलकुल ठीक बात की है ये जूता चलना ही चाहिए विशेषकर वहां जहाँ आम आदमी की कोई सुनने बाला न हो, लेकिन फिर भी एक बात जरूर कहना चाहूँगा की इस जूते का महत्व हर किसी के पल्ले पड़ने बाला नहीं, ये केबल उन्ही लोगों की समझ में आएगा जिन्हें कदम-कदम पर इस व्यबस्था से लड़ना पता है,घटो जो खड़े रहते है राशन की लाइन में और सुनना पड़ता की कि कल आना......,आम आदमी जो सड़ रहा है कीडों की तरह लेकिन उसकी परवाह किसी को नहीं,मेरा विश्वास है सर की ये जूता चलेगा और ऐसी भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ आम आदमी का एक करारा जबाव होगा........<br />लेकिन फिर ऐसा लगता है की कहीं ये जूते भी कम न पद जाएँ.....रिपोर्टर कि डायरी...https://www.blogger.com/profile/08557363435158224014noreply@blogger.com