राहुल कुमार
जब तुम थे मेरे। ख्वाब सारे हसीन थे। उनमें मैं था तुम थे और थीं मोहब्बत भरी दास्तां। दोस्त थीं सारी गलियां, सारी सड़कें। मौसम थे मेहरबां। और चांद तारे भी मुस्कुराकर बांहें पसार देते थे। देते थे अपने होने का अहसास। पेड़ अपने दामन की छांव में समेट लेते थे मुझे। उन दिनों हर पगडंडी जानी पहचानी सी लगती थी। बुलाती थीं मुझे। गोद में अपनी। दुनिया खुद व खुद खूबसूरत हो उठी थी। हां जब के तुम थे।
जिंदगी जिंदादिल थी। जागी जागी सी रातें थीं। महकी महकी सी सुबहें थीं। एक नई उष्मा देने वाली। दिन थे सुनहरे। शामें शीतल। हर लम्हा अनगिनत सुखद अहसास डाल देता था मेरी झोली में। जब के तुम थे। सिर्फ तुम।
तुम थे तो हवाओं में खुशबू थी। वो भी महकती सी। तेरे रूह के जैसी। भंवरें गुनगुनाते थे गीत। लगते थे हमारी कहानी सुनाते से। फूल हर रंग और किस्म के थे मेरे। जानते थे मुझे। पंछी की तरह आजाद ख्याल था मैं। बादल की तरह यायावर। कभी इस सिरे कभी उस सिरे। तेरे ख्याल में डूबा। हंसता मुस्कुराता। सड़कों पर उछलता कूंदता। बांहें फैलाकर दौड़ता। आसमान छूने को।
ख्वाबों का गहरा तालाब था। जिसमें जीने का फलसफा था। ढेरों उम्मीदें थीं और थीं जीने की कई खूबसूरत वजहें। उमंग की कूदती फांदती नदी जेहन में खिलखिलाती थी। जब तुम थे सारा जहां मेरा था। गम कोसों दूर थे। छू तक न पाता था मुझे। तुम थे हर शब्द नया था। खूब उत्साह, उल्लास से भरा। पत्थर के इस शहर में भी सपनों की नन्हीं कलियां खिली खिली रहती थीं। कड़ी धूप में भी। वह सिर उठाए मुस्कान देतीं। उन्हें साकार करने का मद्दा हिलोरें मारता था। वो सब था जो नहीं था। फिर भी तेरे होने भर से मेरा था।
पर अब न जाने क्यों ख्वाब सारे टूटे से लगते हैं। सहरा सा सारा शहर लगता है। अश्कों के मुस्कुराते सब रंग धुल से गए हैं। तू जो नहीं है। और फिर लगता है क्या हुआ। सब जस का तस ही तो है। मुझे फिर वैसी ही नजर से देखना होगा सब कुछ। जैसे पहले था। लाख कोशिश करता हूं। पर हर बार पाता हूं खुद को बेबश। फिर लगता है तुमको भूल न पाएंगे।
शुक्रवार, 29 जनवरी 2010
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3 टिप्पणियां:
धैर्य, लचीलापन कायम रखो, झुके हो तो तन के वापस वहां भी पहुंच जाओगे जहां से झुके थे।
बांहें फैलाकर दौड़ता, जैसे आसमां छूने को। वाह....ऐसे ही हमेशा आसमां छूने की कोशिश करो। य$कीकन $कामयाबी मिलेगी बरख़ुद्दार। वो जज्बा है। आप में। वो फितरत भी। लिखने की चाह है। उडऩे की भी। आंखों में सपने हैं। सपनों को पूरा करने का जज्बा भी। वाह....राहुल बाबू। मजा आ गया। बहुत खूब। जितनी तारी$फ। उतना कम। मेरी ऊंगलियां नहीं दौड़ रही है। कीबोर्ड पर। थम सी जा रही हैं। शब्द नहीं सोच पा रहा हूं। उम्दा। यही कह सकता हूं फिर से। बहुत खूब। बहुत खूब। बहुत खूब। बहुत खूब। बहुत खूब। बहुत खूब।..........
वैसे मैं किसी की तारीफ करने में काफी कंजूस हूं। लेकिन जब दिल को भा जाता है तो दिल खोलकर करता हूं। मैं पढ़ता कम हूं। ब्लॉग ही नहीं। पेशे से जुड़े होने के बावजूद अखबार भी। मैग्जीन और किताबों की भी कमोबेश वही स्थिति है। आप अच्छी तरह वाकिफ हैं। लेकिन आज मैं $खुद को रोक नहीं सका। पढ़ता गया। और बस पढ़ता गया। दिल को छू लिया। आपकी इस लिखावट। आप ऐसे ही आसमां की बुलंदियों पर पहुंचों। मेरी सारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।...... मेरा बहुत सारा प्यार,,,,,,,,
आपका- सुनील मौर्य
vaah ji vaah.....maja aa gaya ...dil ko chhoo liya ... achchha likhne lage ho...
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