सोमवार, 3 नवंबर 2008

आतंक को सिर्फ़ आतंक रहने दें, कोई नाम न दें

मानवता की हत्या करने वाली हिंसा को महज आतंकवाद ही रहने दे। इसे हिंदू आतंकवाद या मुस्लिम आतंकवाद का नाम न दें। राजनीति के लिए देश को बाटंने की जो घिनोनी कवायद घटिया राजनेताओं ने शुरू की है इसे बढावा न दें। क्योकि आतंकवादी आतंकवादी है वह न तो हिंदू है और न ही मुस्लिम उसकी कोई जाती नही, कोई मजहब नही है।
पिछले दिनों जब से तथाकथिक साध्वी प्रज्ञा का हाथ विस्फोटो में होने की बात प्रकाश में आई है, tab se नया शब्द हिंदू आतंकवादी का अवतरित हुआ है। समाचार पत्रों से लेकर कुछ ड्रामा- कुछ न्यूज़ चेनलो में भी एस शब्द का प्रयोग खूब हो रहा है। कहा जा रहा है कि मुस्लिम आतंकवाद का जवाब देने के लिए हिंदू आतंकवाद को खड़ा किया गया है।
सरासर बकबास बात है ये लोग तो वह है जो ख़ुद को भी पुरी तरह से नहइ समझ पाए है। इनके लिए न देश है और न उससे प्रेम। वरना बम फोड़ने कि ताकत उम्न्मे जन्म हही नही पाती। भला अपनी भारत माँ की छाती पर घाव करने कि जुर्रत इसी मिटटी में खेला, उसमे रचा बसा कोई लाल कर सकता है। यह आतंकवादी तो हो सकते है पर इन्सान, हिंदू मुस्लिम या कोई जाती कतई नही।
यह तो वह कुत्ते है अपनों को ही काट लेने है जो दाना- पानी देता है और पालता- पोसता है।
इन जेसे कायरो से डरने कि कोई जरुरत नही है।
आप लोगो को याद ही होगा १९१९ में हुए जलियावाला हत्या कांड में गोलियां चालने वाले ज्यादातर सिपाही हिन्दुस्तानी थे। पर आज हम याद उन अमर शहीदों को करते हैं जिन्होंने गोलियां सीने पर खायी थी। उन गद्दारों को नही जिन्होंने हुकूमत के इक इशारे पर वतन को कलंकित कर दिया था। अब उन्हें हिंदू अंग्रेज कहे तो बेमानी होगी। ठीक वैसे ही जैसे आज सभी लोग हिंदू या मुस्लिम आतंकवादियो जैसा शब्द प्रयोग कर रहे हैं।
आतंकवाद को आतंकवाद रहने दो कोई नाम न दो। क्योकि यह इन्सान ही नही। इनमे जीवन ही नही। कोई संवेदना ही नही... तो फ़िर इनका नाम कैसा.........?