रविवार, 18 जनवरी 2009

विश्वविद्यालय- चेहरे बदल गए सपने वही हैं

बहुत दिनों बाद पूरे मन से अपने विश्वविद्यालय गया। उसे जीने के लिए। फ़िरसे महसूस करने के लिए। जेहन में उठ रही बहुत सी यादो को फ़िर से एक आकार देने के लिए। अपने विश्वविद्यालय में। जिसने बहुत प्यार दिया। बहुत से प्यारे और अपनों से मिलाया। जिसने जीने की नई राह दिखाई। जिसने रुलाया, हसाया, बहुत से खट्टे मीठे अनुभव दिए। जहा मेरा सबसे ख़ास समय बीता। जहा आशीष सर मिले। मुझे बहुत प्यार करने वाले। ऐसे गुरु जो दोस्त ज्यादा है। जिन्होंने जोश दिया। अरमानो को पूरा करने का। तोमर सर मिले जिन्होंने समाज को देखने की इक नई द्रष्टि दी। जहा उत्सव मनाया। जहा उत्साह को जिया। जहा उमंग भरी सुबह और महनत से थका देने वाली शाम बितायी। मेरा विश्वविद्यालय। जो अभी भी रातों को जगा देता है। जिसकी याद दिन को उदास कर जाती है। जो मेरा था। शायद है ? जिसे जीने की चाहत आज भी है। उन्ही अपनों के साथ जो अपने थे।
गाड़ी न होने की वजह से पहले की तरह पैदल विश्वविद्यालय गया। मन पुरानी यादो से सराबोर था। वही अशोका मार्ग और वही मोल श्री पथ बिल्कुल वैसे ही मुझ देख रहे थे जेसे पहले हमेशा देखा करते थे। मुझ आते जाते हुए। जिनसे अक्सर अकेलेपन में मैं बात कर लिया करता था। सुख की दुःख की। अपनेपन की। विश्वविद्यालय जनवरी की गुलाबी सर्दी में बेहद खूबसूरत लग रहा था। हमारे विभाग के सामने का पार्क और भी सुंदर हो गया है। पूल में पानी भर दिया गया है जो हमेशा खाली रहता था। पार्क में हमेशा की तरह लड़के लकडिया साथ साथ पढाई कर रहे है। कुछ पढाई कुछ, कुछ कुछ करने की कवायद। प्यार और विश्वविद्यालय की यादो को अमर बनाने की कवायद। जो याद आए तो खुशी का एक झोके की तरह हो।
येही पार्क जहा हमने भी पढाई की थी। क्लास के अभाव में। जहा बीज बोए थे आंदोलन करने के। जहा तय हुयी की कहानी नई लहर की। इसी पार्क में बैठे बैठे सोच था। क्लास और हक़ के लिए लड़ के रहेंगे। और लड़ भी।
विभाग में पहुचा तो सबसे पहले अपनी क्लास को निहारा। देखा। किनता समय बदल गया। कल तक इन कुर्सियों पर हम बैठा करते थे। पहले दुबेदी सर फ़िर तोमर सर से पड़ते थे। खूब मजे के साथ। हसते। फटकार खाते। अचानक मेरी निगाह क्लास की दीवारों गई। बदलाओ था। पर अच्छा था। अब दीवारों पर विभिन्न समाचारों का मुख्या प्रष्ट लगा दिया गया है। जहा मैंने उत्साह में भगत, सुभाष, और विवेकानंद की तस्वीरें लगा दी थी। तोमर सर ने ठीक नही समझा था। क्लास में ये सब नही। सिर्फ़ पढाई। बाद में भुवनेश सर से मिलना हो गया। हाल चाल पूछे। कुछ चर्चा हुयी। मीडिया पर। उसकी स्तिथि पर।
मुझसे मिलने मेरे कुछ नए साथी आए गए। उन्हें पता चल गया था की मैं विश्वविद्यालय आ रहा हूँ। असल में मैं भी उनसे मिलना चाहता था। विश्वविद्यालय की पिछले दिनों से जाने क्यो बहुत याद कर रहा था मैं। सो उसे जीने के लिए फ़िर से विश्वविद्यालय आ ही पहुँचा। हरीकृष्ण, दीपाली, निहारिका, और सीनू मिलने आ गए। इनकी आखो में ठीक वैसे ही सपने जेसे हमारे थे। यह भी उन्ही बातो को लेकर उतावले और सहमे हैं जिनके लिए हम थे। और आज भी है।
वाकई विश्वविद्यालय अभी भी वही का वही है। बस चेहरे बदल गए है। सपने वही है। शायद इसलिए विश्वविद्यालय हमेशा जिन्दा रहता है। यहाँ सपने पलते हैं। हर साल नए चेहरों के साथ। नया उत्साह। नई सोच । और नई शक्ति लिए नए लोगो के मन में। कुछ कर गुजरने के, कुछ बनने के। कल ये भी पुराने हों जायेंगे। जिन्दगी चलती रहेगी। याद आती रहेगी। अपनों की। अपनों के साथ बिताये प्यारे लम्हों की। जो जेहन मैं हमेशा कुलबुलाते रहेंगे। जो रह रह कर याद आते रहेंगे। जो बहुत रुलायेंगे, फ़िर याद आयेंगे। उतना ही ज्यादा जितना जीवन को महसूस करेंगे। कल तक हम भी वही थे। जी रहे थे। पर अब सिर्फ़ यादे है। खट्टे मीठे लम्हे। मेरे दोस्तों तुम्हे भी याद आएगी। तुम भी जेहन में छुपी इन यादो को महसूस करके रोओगे, हसोगे, अभी जी लो । फ़िर नई दुनिया तुम्हारा इन्तजार कर रही है। जहा तुम्हे अपने सपनो को सच करना है, नए आयाम स्थापित करना है। अपनों के साथ जियो । अपनों को लेकर जियो। क्योकि कल इनके साथ रहने को नही मिलना है, रास्ते बदल जायेंगे। सिर्फ़ यादें रह जाएँगी। कुछ ऐसे ही सपने हर किसी के मन में। हर साल रहते हैं। कुछ विश्वविद्यालय के अंदर के सपने। तो कुछ बाहर के छात्रो की कसक के रूप में। पर नही रुकता विश्वविद्यालय का फलसफा। जो बहुत कुछ सिखाता है। फ़िर याद बन जाता है, हमेशा के लिए। वाकई मैंने तुम्हे बहुत याद करता हूँ मेरे विश्वविद्यालय
राहुल कुमार

5 टिप्‍पणियां:

रिपोर्टर कि डायरी... ने कहा…

सर समय गुजर जाता है और पीछे छोड़ जाता है यादें, सिर्फ ढेर साडी यादें! आज जो हम महसूस कर रहे है जो कल आप ने किया होगा और आप आज जो अनुभव कर रहे है वो आने वाले भविष्य में हम भी करेंगे और फिर से वक्त के साथ किरदार बदल जायेंगे, इसे पढ़ कर ऐसा लगा की बस वक्त यहीं रुक जाये थोडी देर के लिए ताकि मै भी इस जिन्दगी को इस पल को जी भर के जी लूं ताकि फिर इसे यद् कर सकूँ,महसूस कर सकू जिसे आपने किया है..........

media ka falspha ने कहा…

क्या खूब लिखा है सर जी

www.जीवन के अनुभव ने कहा…

क्या बात है सरजी आपने तो हमें एहसास करा ही दिया की वक़्त मुट्ठी मैं रेत की तरह है| जो हमारे हाथो से फिसलता जा रहा है|

पूनम एस चव्हाण ने कहा…

rahul such mai tumne yaado mai base university par se dhundh saaf kar di..wakai un lamho ko yaad karna aisa lagta hai jaise hum aona buchpan yaad kar rahe ho..na jane kitni shararte, kitne sapne..kitna jazba...aur kitne sabak..sab samne nazar aane laga..wo samay ankhe nam kar deta hi..

Harsh ने कहा…

chachu kuch dum hein aapke vicharo mein