मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

ग़ज़ल

अक्सर तेरे ख्याल से बाहर नहीं हुआ
शायद यही सबब था मैं पत्थर नहीं हुआ।

महका चमन था, पेड़ थे, कलियाँ थे, फूल थे,
तुम थे नहीं तो पूरा भी मंज़र नहीं हुआ।

माना मेरा वजूद नदी के समान है,
लेकिन नदी बगैर समंदर नहीं हुआ।

जिस दिन से उसे दिल से भुलाने की ठान ली,
उस दिन से कोई काम भी बेहतर नहीं हुआ।

साए मैं किसी और के इतना भी न रहो,
अंकुर कोई बरगद के बराबर नहीं हुआ।