गुरुवार, 7 मई 2009

पप्पू एक छलावा और नेताओं का पाप है

राहुल कुमार
चंद स्वार्थी और खुद को दूसरे से ज्यादा जागरूक समझने वाले कथित लोगों ने वोट की ऐसी लहर चलाई कि पप्पू शब्द ही घृणित कर दिया। हर तरफ पप्पू न बनने की गूंज है। पप्पू मत बनिए वोट डालिए। आपका वोट सरकार बदल सकता है। लोकतंत्र में भागीदार बनो आदि इत्यादि। जैसे आप पप्पू बन गए तो इस धरती पर रहने के काबिल ही नहीं है। पप्पू होना दुनिया का सबसे बड़ा गुनाह है। सरकार से लेकर खबरिया चैनल, बकबक करने वाले एफएम और पत्र-पत्रिकाएं पप्पू न बनने का दबाव डाल रही हैं। इस सारी मुहिम में पप्पू नाम वालों का क्या हुआ होगा मैं नहीं जानता पर यह जरूर समझ सकता हूं कि यह पप्पू साधारण नहीं है। बड़ी चाल है। और इसके पीछे वही गंदी राजनीति जान पड़ रही है।
जानता हूं कि वोट देना हक है और हर व्यक्ति को वोट देना चाहिए। लेकिन जिस तरह मतदाताओं पर जबर्दस्त दबाव बनाया जा रहा है वह पच नहीं रहा है। वोट लेने के लिए नेताओं ने पूरा प्रोपेगंडा रच डाला हैं। पप्पू कह कह कर मतदाता को इतना जलील करने की मुहिम चला दी है कि वह पप्पू शब्द से घृणा करने लगा है और इसी डर से की कहीं वह घृणित प्राणी न हो जाए वोट डालने जा रहा है। इसमें जागरूक करने की कौन सी बात है? यह तो सरासर डराना और धमकाना है। जिसमें सरकार से लेकर मीडिया तक शामिल है।
आखिर समझ नहीं आता यह पप्पू पप्पू क्या है। हर खास बनने की ललक वाला लंपट प्राणी पप्पू के नाम को भुना रहा है। जो भी चार पत्रकारों की प्रेस वार्ता का खर्चा उठाने में सक्षम है वह पप्पू का मसीहा बन बैठा है। वह मीडिया से जरिये अपील कर रहा है कि पप्पू मत बनिए। वोट देने वाले को वह दवाईयां मुफ्त देंगे। मुफत में बूट पोलिश करेंगे, मनोरंजन पार्काें और मल्टीप्लेक्स में छूट देंगे, बस वोट डालने जाओ। उनकी बात मानों क्योंकि वह अपील कर रहे हैं और अपील करने की उनकी हैसियत है। यह वही छपास के रोगी हैं जो मीडिया पर कुछ खर्च कर चमकने की लालसा रखते हैं और कामयाब भी होते हैं। इन सालों से पूछा जाए कि इनके घर के सदस्य कितने वोट देते हैं तो आंकड़ा शून्य ही निकलेगा। और छूट देना किस मानसिकता को उगाजर करता है वह भी साफ हैै। क्योंकि अमीर आदमी तो छूट के लालच में आएगा नहीं। इसका मतलब वह समझते हैं - पप्पू गरीब मतदाता है जो छूट के लिए और बूथ पोलिश के लिए वोट डालने आ जाएगा।
अफसोस इस बात का है कि इस परिस्थिति के लिए भी आम जनता को ही दोषी ठहराया जा रहा है। जिसके पास पैसा है वह जागरूक करने वाला बन बैठा है। जागरूकता की परिभाषा तय करने का मानक क्या है ? किसी को वास्ता नहीं। साथ ही आहत इस लिए भी हूं कि मतदाता पर सब चढ़ बैठे हैं। आखिर यह हालात पैदा किसने किए ? ऐसा कौन सा नेता है जिसे अपना मत दिया जा सके। खैर आप कहेंगे कि पप्पू न बनने के लिए फाॅर्म नंबर 17 इस्तेमाल किया जा सकता है। पर क्या यह सवाल खड़ा नहीं होता कि पांच साल के लिए चुन लिए जाने वाले नेताओं के लिए ऐसी मुहिम क्यों नहीं चलाई जाती। क्यों सरकार ऐसे विज्ञापनों का इस्तेमाल उन नेताओं के लिए नहीं करती जो पांच साल सत्ता सुख भोगने के बाद भी विकास की उपलब्धियोें में शून्य होते हैं। आज तक क्यों नेताओं के पप्पू बनने की बात का प्रचार नहीं हुआ। मीडिया, सरकार और खुद को जागरूक कहने वाले कथिक समाज सुधारक घोटाले करने वाले भष्ट्र नेताओं के लिए आगे नहीं आए। क्यों जनता को ऐसे नेताओं के खिलाफ मुहिम चलाने के लिए जागरूक नहीं किया जाता है। और जनता को ही क्यों जागरूक किया जाए, क्या भला वही सोई है। इन बांगडू नेताओं को जागरूक क्यों नहीं किया जाता। जो सत्ता में आते ही टमाटर की तरह लाल हो जाते हैं और आसमान छूती कोठियों का स्वामी बन बैठता है। पप्पू बनने के लिए क्या महज मतदाता ही है। यह साजिश के अलावा और कुछ नहीं। पप्पू एक छलावा है जो नेताओं का बनाया हुआ पाप है। अपने पाप को छुपाने के लिए सरकार ने यह पप्पू पैदा किया है और मतदाताओं को उलझा कर फिर से अपना उल्लू सीधा किया है।

2 टिप्‍पणियां:

मधुकर राजपूत ने कहा…

पप्पू मत बनिए वोट कीजिए। ये प्रचार शुरू किया था दिल्ली चुनाव आयोग ने। इस प्रचार से आहत होने वालों के लिए चुनाव आयुक्त दिल्ली ने माफी भी मांग ली है। हालांकि एक एनजीओ ने ही इस मुहिम को छेड़ा। तर्क था कि पचास फीसदी से ज्यादा मतदात मतदान करते हैं और चुनाव आयोग पचास करोड़ मतदाताओं को पप्पू नहीं कह सकता। क तरफ तो चुनाव आयोग फ्री एंड फेयर इलेक्शन की बात करत है और दूसरी तरफ 49-O के लि ईवीएम में कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए चुनाव आयोग ने शर्मिंदगी जताई है। गरीब तो हमेशा ही बूथों का रुख करते हैं लेकिन ये एलीट ही हैं जोबूथों तक जाने में शान को बट्टा समझते हैं।

Arvind Singh Sikarwar "AZAD" ने कहा…

vande matram rahul ji kaise hain


aapne comment kiya bahut hi achaa laga


aapne sahi baat kahi ki netaon ki tarah bhashan baji hai magar aab aap marg darshan karte rahen to sudhar hoga

kyonki main lekhan ke chetra main abhi bilkul naya hun
to jo man main baat aati hai aur jo shabd aate hain wahi likh deta hun

mere lekh main apni bhavnaoon ko vyakt karne ki kosis karta hun


aap bas guide karte rahiye
vande matram


aapne bahut hi achhe mudde par baat kiya hai pappu pappu karke sarkar sachaai ko chupane ki kosis karti hai