गुरुवार, 17 सितंबर 2009

खूब बिकी किशोरी वो तो नोएडा वाली आरूषि थी

राहुल कुमार
सिर्फ मरा हाथी ही सवा लाख का नहीं होता। यहां तो मासूम किशोरी आरूषि मरने के बाद मीडिया के लिए करोड़ों की साबित हुई है। धंधा बन चुकी और टीआरपी की गुलाम मीडिया ने जैसे चाहा आरूषि को वैसे बेचा। किसी ने पापा का पाप कहकर बेचा तो किसी ने पापा तूने क्यों मारा कहकर। किसी ने उसे मासूम करार दिया तो किसी ने आज की आधुनिक लड़की, जिसे माता पिता भी नहीं समझ सके। तरह तरह से। पचासों एंगल से उसे बेचा। बेवजह देश की सबसे बड़ी मिस्ट्री करार दिया। बेचने के कई तरीके खोजे। और जिस भाषा में, जिस दिमाग से बेचना चाहा, बेचा। इलेक्ट्राॅनिक ही नहीं प्रिंट ने भी बेचा। पूरा पूरा पेज बेचा। स्पेशल निकालकर। हर अखबार ने कम से कम तीन-तीन सौ बार आरूषि पर रिपोर्टें छापी। केस की हर हरकत पर अपने नजरिये से कुछ भी लिखा। मर्डर मिस्ट्री पर बांगडू से बांगडू रिपोटर्र की अपनी थ्योरी दी। जिसे वह अकाट सत्य मानकर जी रहा है। और दावा कर रहा है कि पुलिस या सीबीआई उस पर काम कर दे तो केस मिनटों मंे खुल जाए। छोटे से छोटा अखबार भी। बड़ी से बड़ी थ्योरियां दे रहा हैै। लगातार मर्जी से। क्योंकि आरूषि बिक रही है। और मीडिया ने उसे ऐसा बना दिया है। हाल ही के दिनों में आरूषि का जिन्न फिर जिन्दा हुआ है। पहले दिनों उसकी स्लाइट हैदराबाद में झूठी साबित हुई और अबकि उसका मोबाइल मिलने से हंडकंप मचा है। फिर सारी क्लिप बिकने लगी। फिर घंटो वाचक स्टूडियों मंे बकने लगे हैं। आरूषि आरूषि आरूषि। जिस रात मोबाइल मिलने की सूचना आई। कई चैनलों ने अपनी ओवी वैन खुर्जा भेज दी। रात भर मीडिया मैन धूमते रहे। प्रिंट को भी चैन नहीं। रातों रात लिख डाला। पिफर पुरानी पफाइलें काम आई। क्योंकि नया तो आरूषि फिर अखबारों के पहले पन्ने पर छपी और चैनलों पर घंटों दिखी।
सीबीआई ने छोड़ो तो मोबाइल वाली कुसुम को एक चैनल ने सुबह ही बिठा लिया। देखिए तमाशा सवाल पर सवाल। सवाल पांच मिनट में खत्म। वहीं सवाल फिर से। कुसुम उनका जवाब पांच पांच बार दे चुकी है। फिर से वही सवाल। आखिर समय खीचना है आरूषि बिक रही है और उसे बेचना है। कुसुम एक ही तरह सवालों को जवाब बार बार देे देकर खीझ रही है। लेकिन गरीब है। कुछ विरोध नहीं कर पा रही है। जो नहीं कहना चाहती चैनल उगलवाना चाहते हैं। कशमकस है।
अजीब है ये दुनिया। जहां सिर्फ छाने की हसरत लिए टीआरपी का बोलबाला है। गुलाम। जहां सोचने समझने की शक्ति का रास्ता सिर्फ विज्ञापन से होकर गुजराता है। जहां समाज और सरोेकार मर गए। मार दिए हैं। फिर भी दंभ है चैथे स्तंभ का। समाज को आईना दिखाने का। सोचता हूं अगर सच में आरूषि का भूत आकर उसे बेचने के तरीकों पर सवाल करे। या मानहानि का दावा करे तो मीडिया सलाखों के पीछे हो। बेचने की चाहत में कुसुम और रामभूले ने भी देश को, चैनलों के स्टूडियों के माध्यम से संबोधित कर डाला। आरूषि के प्रति आम लोगों में क्या है क्या नहीं, कहा नहीं जा सकता। लेकिन मीडिया के लिए आरूषि इतिहास बन गई। मीडिया ने इतना बेचा की उसका हर रिपोर्टर और संस्थान का मालिक उसे हमेशा याद रखेेगा। और पंक्तियां दोहराएगा। खूब बिकी किशोरी वह तो नोएडा वाली आरूषि थी। अफसोस हर्ष के साथ।

1 टिप्पणी:

दिल दुखता है... ने कहा…

yahi to mediaraj.......
apne fayde ke liye media kuch bhi bol sakti hai or kuch bhi kar sakti hai.... ye sirf ek vyavsay ho kar raha gaya hai....