रविवार, 6 दिसंबर 2009

नाइट क्लब में डांस पे चांस....

राहुल कुमार
लगातार आ रहे आॅफरों को कई बार ठुकराने के बाद, न जाने क्यों इस बार नाइट क्बल का रूख कर ही लिया। देखें तो भला रात की सुकून भरी नींद गवाने और उछले-कूदते, बांहों में बांहें डालने के पीछे लोगों का फलसफा क्या हैै। सो, दो साथियों के प्रवेश को एक फोन घुमाकर पक्का कर लिया। अकेले जाना मुनासिब न समझा। अपुन खांटी देसी आदमी, उस पर खराब मैनेजर। लेकिन अफसोस की बाकी दो भी अपुन जैसे ही। पर अच्छे मैनेजर। अब जाना है तो जाना है। मन बन गया है। और फिर तय कर दिया रात में मदहोश होती जवानियों के थिरकते कदमों से कदम मिलाने का समय। रात 11 बजे।
दोनों भाई लोग अपनी तरह अर्थशास्त्र में कमजोर। उम्र में बड़े। मुझसे खर्च भी नहीं करा सकते। एक की पगार हाल ही में मिली है। प्रवेश मुफ्त है। लेकिन पीने का खर्चा बहुत। पूरी पगार जेब में रख ली है। बहुत कुछ पीकर गए हैं। ताकी क्लब में और न पीना पड़े। लेकिन पीना तो पड़ेगी ही। रात जवान होगी और शराब उतरती-चढ़ती रहेगी। एक ने बहुत पी है। मैंने उससे कम और एक ने मुझसे भी कम। क्योंकि उसकी गर्लफ्रैंड का फोन आ जाता है। वह डरता है। अपनी अभी-अभी जुदा हो गई। टेंशन खत्म। पहले फोन आता था। तब पीते भी नहीं थे।
क्लब में जोड़े के साथ प्रवेश है। लेकिन अपनी चलती है। तीन का जोड़ा है। वो भी मस्ती में। भाईयों के साथ प्रवेश करते हैं। मुंबई से बैंड आया है। बहुत पाॅपुलर है। कानों में डीजे की धमक के अलावा कुछ सुनाई नहीं दे रहा है। सारा शरीर लगभग डीजे बन गया है। पूरा डांस फ्लोर थिरक रहा है। हम भी। सामने बार काउंटर है। जो भी पीना हो, पैसे दो और पिओ। पटियाला, टकीला, काॅकटेल, बीयर, बिस्की, रम, वोदका कुछ भी। लड़कियों के हाथों में बीयर की बोतल है। कुछ काउंटर पर टकीले पे टकीला पिये जा रही हैं। वोदका उन्हें खूब पसंद आ रही है। सब पुरुषों मित्रों के साथ हैं। बांहों में बांहे और लगभग सांसो में सांसे डाले हुए। चेहरे से खानदानी कम, रहीस ज्यादा हैं। बहुत कुछ पहना है फिर भी बहुत कुछ दिख रहा हैै। भाई इशारा करता है। अपुन पहले से ही देख रहे हैं।
रात जैसे-जैसे बढ़ती है। हरकतें भी बढ़ती जा रही हैं। पहले महज डांस हो रहा था। लेकिन अब और भी बहुत कुछ। जिन्होंने क्बल में ही पी है, वह अब बहकने लगे हैं। इसलिए हरकतें भी बढ़ गई हंै। पास वाला जोड़ा परेशान है। लड़का बार-बार किस लेना चाहता है। लड़की चेहरा फेर लेती है। बांहों में बांहें हैं पर होंठ.....जाने दीजिये। वह नखरे कर रही है। शायद बाद में किस देगी। देना नहीं होता तो रात को क्लब में ही क्यों आती। खैर।
भाई लोग पूरी बाराती स्टाइल में फ्लोर पर हाथ-पैर फड़फड़ाने लगे हैं। अपुन को थोड़ा बहुत थिरकना आता है। फ्लोर पर भीड़ बहुत है। सब नशे में चूर हैं। पता नहीं कौन किसके साथ आया है। जो मिलता है, उसी के साथ डांस पर चांस मारा जा रहा है। कौन कहेगा अपुन बगैर गर्लफ्रैंड के आए हैं। आसपास कई गोपियां कमर मटका रही हैं। कई बार स्पर्श का आनंद भी मिल जाता है।
करीब एक घंटे बाद एक जोड़ा थक पर सोफे पर लेट जाता है। अपनी पार्टी भी थक गई है। सोफे पर बैठने पहुंच जाते हैं। अंधेरा काफी है। फ्लोर पर चमक रही लाल पीली बत्ती से कुछ कुछ दिखता है। देखकर लगा शायद अब रात पूरी तरह जवान हुई है। कई जोड़े हैं वहां। पर हम वहां से निकल लेते हैं। कुर्सियों पर बैठ जाते हैं। भाई सिगरेट का पूरा पैकेट लेकर आया है। सुलगा लेते हैं।
कुछ सुस्ताते हैं। भाई इशारा करता है। क्योंकि कान मुंह के कितने भी पास हो आवाज सुनाई नहीं दे रही है। तीन लड़कियां हमारी तरह अकेली खड़ी हैं। शायद पार्टनर की तलाश में हैं। दोस्त आॅफर करने की बात करता है। अपुन को डर लगता है। साफ इंकार कर देते हैं। वह कुछ पास आतीं हैं। मुस्कुराती हैं। कुर्सियों पर बैठ जाती हैं। उनके हाथ में भी सिगरेट हैं। भाई डांस पर चांस मारने का चांस उन्हें देता है। वह राजी हो जाती हैं। मस्ती दुगुनी हो चली है। भाई वेस्ट आॅफ लक वाला अंगूठा दिखाता है। अब अपुन भी एक के साथ फ्लोर पर पहुंच जाते हैं।
कदमों के साथ कदम मिल गए हैं। मुझे घबराहट है। वह बिंदास है। मैं उसके कान में चिल्लाता हूं हाॅस्टल मंे रहती हो क्या ? वह डांस करते करते सिर हिला देती है। तभी जादू है नशा है..... बज उठता है। वह करीब आ जाती है। कब उसका हाथ मेरी कमर में आ जाता है पता नहीं। और मेरा भी। यह भी पता नहीं। सोणी केे नखरे सोणे लगदे.... बजते ही वह दूर हो गई है। पूरे जोश के साथ नाचने लगी है। अपुन फ्लोर छोड़कर कुर्सियों पर आ बैठते हैं। भाई लोग मस्त हैं। मेरा ख्याल उन्हें अब नहीं है।मैं उन्हें बुलाता हूं। और उपर वाले फ्लोर पर जाने के लिए कहता हूं। तीनों जाते हैं लेकिन बड़े कद वाला बाउंसर खड़ा है। वह रोक देता है। कहता है उपर कुछ नहीं है। जाना मना है। डांस नीचे ही करो। हम नादान नहीं हैं। जानते हैं उपर क्या है पर जाना भी नहीं चाहते। क्योंकि यह सब जानते हैं।
मन पूरी तरह उब चुका है। दम घुटने लगा है। ज्यादातर जोड़ियां थक कर बैठ गई हैं। कुछ लेट गए हंै। फ्लोर पर एक्का दुक्का ही बचे हैं। रात के तीन बज चुके हैं। अपना अब वापस चलने का मन है। तीनों राजी भी हैं। साथ वाली लड़कियां कहां गई पता नहीं। शायद किसी और के साथ हो गई होगी। लेकिन उनकी इस फितरत का बुरा नहीं लगता। जैसा कि उसका......खैर जाने दीजिये।
वापसी बेहद भारी है। दिमाग फट रहा है। लुत्फ क्या मिला पता नहीं लेकिन रात व्यर्थ जाने का दुख है। शुक्र है आने वाला दिन रविवार है। और काम कम है।
गाड़ी स्टार्ट करने से पहले दोस्तों से कहता हूं। यह क्या रिश्ता था। बांहों में बांहें थी और साथ में डांस। कुछ पल बेहद करीब। लेकिन अब कुछ नहीं। जैसे न अपने होने का कोई स्वाभिमान, न कोई अस्तित्व और न किसी तरह की कोई भावना। एक पल साथ और दूसरे पल में कोई नाता नहीं। तभी दोस्त चपत मारता है। ठीक वैसे जैसे किसी बेवकूफ को मारी जाती है। वह कहता है यह तो एक रात का साथ था। लोग सालों का छोड़ जाते हैं। तभी उसका ख्याल आता है। फिर कहता हूं। तो क्या अंतर है, इस रिश्ते में और उस रिश्ते में जो सालों रहा। दोनों रिश्तों का नतीजा एक है तो फितरत भी एक सी ही होगी। दोस्त हामी भर देता है। और कहता है कोई अंतर नहीं। सब एक है। लेकिन मेरा मन यह मानने को तैयार नहीं है। कम से कम अपनी जानिब तो बिलकुल नहीं।
रात भर नाचने के बाद भी मन बेहद उदास है। तभी दोस्त कहता है पगार में से साढ़े तीन हजार का बट्टा लग गया। मैं मन ही मन कसम खाता हूं। आज के बाद न नाइट क्लब और न ही शराब।

10 टिप्‍पणियां:

Bishan Papola ने कहा…

राहुल भाई वाकई गजब का टाॅपिक है और उसको प्रस्तुत करने का अंदाज भी बेमिसाल है। वैसे में अपकी लेखनी से पहले ही प्रभावित हों, आप ऐसा ही लिखते रहे मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं ।

बेनामी ने कहा…

भाई आपने जाना छोड़ दिया तो क्या ? हमें तो भेज सकते हैं। एक मौका हमें भी दिला दो। सुरा और सुंदरियों के बीच थिरकने का। वैसे लाजवाब लिखा है। और जिस साहस से लिखा है बधाई के पात्र हैं।

BIJAY MISHRA ने कहा…

wah maja aa gaya, hamare office me bhi kuch aise log hai

Unknown ने कहा…

wakai apne is topic ke jariye hitek nagro ki raat ki rangeen hakikat to dikhiya hai. sabdo ka prayog ghajab hai. likhne ke liye subject kaffi accha chuna. ek taraf jaha ladkiyon ke sharab ke nashe me ghoomta sarir ke bare me likha to vahi dusri taraf aise raato me hone wali paise ki barbadi ko bhi bahu aache se likha. bahut accha

मधुकर राजपूत ने कहा…

बहुत कुछ पहना था मगर फिर भी बहुत कुछ दिख रहा था, बेहतरीन लाइन। रिश्तों को लंबे खींचने वालों के लिए क्लब नहीं होते। क्लब शाश्वत हैं, सदस्य बदलते रहते हैं। इसलिए उनका नाम क्लब है। मस्ती कर ली बहुत हुआ। दिमाग चलाओगे सुखी रहोगे दिल चलाओगे दुखी रहोगे। जाने से पहले कह देना।
मौज की, सैर की, घूमे फिरे शाद रहे,
चलते हैं ए जहां वाले दुनिया तेरी आबाद रहे।

Prerna Sharma ने कहा…

राहुल तुम्हारे लेख पढ़ने का हमें इंतजार रहता है। इस लेख के जरिए तुमने देर रात क्लब में होने वाली गतिविधियों का जो सजीव चित्रण किया है, वह काबिले तारीफ है। आगे भी मजेदार विषयों पर लिखो हमें इंतजार रहेगा।

Unknown ने कहा…

वाह जनाब पीना शुरू भी कर दी और छोड़ भी दी। क्या जरूरत है इतनी जल्दी छोड़ने की। जब पीना शुरू कर ही दिया है तो जरा लुत्फ लेकर ही तौबा करते। अपने दोस्त की तरह तुम्हें तो अब डर भी नहीं। घर वालों को बताना पड़ेगा लड़का जवान की दहलीज पर कुलांचे मारने लगा है।
खैर जिस साहस के साथ सब कुछ लिख डाला है। मुरीद हो गए। रिश्तों को पकड़कर मत बैठो। जिन्हें निभना होता है वह टूटते नहीं। और जो टूट जाते हैं उनकी यही नियति होती। शुक्र करो जल्दी मुक्ति मिली। वरना जूझते रहते।

Unknown ने कहा…

chachu satyug mein tha sur sura sundri aur kalyug mein hein sharab shabab kabab so chachu dance pe chance mar le truly i ipressed your thoughts and feelings no one can think such these things os like your writing skill. so carry on chachu

Unknown ने कहा…

राहुल, मेरे भाई बहुत अच्छे टापिक पर लिखा है। जिंदगी का मजा तो पीने में ही है। एक बार पी ली तो क्या हुआ। सुंदरियों के साथ मौज-मस्ती जरूरी है लेकिन संभलकर। खैर, मैं बहुत कुछ नहीं कह सकता, इतन अवश्य कह सकता हूं कि बहकना चाहिए लेकिन थोडा संभलकर। मेरी शुभकामनाएं हैं ऐसे ही मारवेलस तरीके से लिखते रहो।

राहुल यादव ने कहा…

लेख पसंद करने के लिए सभी को धन्यवाद। खैर जो मैं कहना चाहता था वह खुलकर कह तो सका, लेकिन जिन लोगों ने टिप्पणी न देकर मुझे फोन पर बधाई दी, उन्होंने एक बात और कही। वह यह कि लेख का अंत हिन्दी फिल्मांे की तरह हो गया। लेख का सुखद अंत करने की कोई जरूरत नहीं थी। हो सकता है कि मैंने अपनी छवि सुधारने के बावस्ता सब कुछ छोड़ने के बात लिख दी हो। लेकिन ज्यादातर लोगों को यह पसंद नहीं आई। खासकर मेरा लेख लिखने के पीछे नाइट क्लब की जिंदगी उजागर करने और एक टूट चुके रिश्ते की फितरत तय करने की कोशिश थी। मैं कितना सफल हुआ नहीं जानता।