सोमवार, 11 जनवरी 2010

धांसू धांसू ब्लाॅगर

राहुल कुमार

एक धांसू रिपोर्टर नए ब्लाॅगर बने हैं। और धांसू ब्लाॅगर बनने की चाह में हैं। भाईसाहब ने एक घंटे में ही ब्लाॅग का पोस्टपार्टम कर डाला। रिपोर्टिंग से जी चुरा कर एक दिन 12 बजे से ही पीसी में पिल पड़े और बहुत कुछ सीख डाला। हालांकि ब्लाॅग में सीखने को कुछ भी नहीं है। जो मोबाइल व कम्प्यूटर आॅपरेट कर ले वह ब्लाॅग भी हांक सकता है। लेकिन गुुरू को अपनी इस उपलब्धि पर बड़ा गुमान हुआ। और हमसे अपने मुखारबिंदू से पेल बैठे कि हमें भलां सिंह, भलां कुमार कहते हैं। एक दिन में ही सब कुछ सीख डालते हैं। समझे। अभी तुम सीखो, कोशिश करो। तुम्हें भी आ जाएगा।

दरअसल अपुन भी उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए पूछ बैठे थे कि वाह भाई बड़ा अच्छा ब्लाॅग बना लिया। अक्षरों को रंगीन कैसे किया ? तभी गुरू का दिमाग फिर गया। लगा जैसे उन्होंने बड़ा भारी ज्ञान अर्जित कर लिया हो और अब कोई भी यहां तक नहीं पहुंच सकता। -वो बात अलग है कि नील अर्मास्टांग के बाद कई लोग चांद को भी रौंद आए हैं।-, लेकिन अपने गुरू फलसफा तुरंत छुपा गए। कहने लगे- हमने सीखा है। मेहनत की है। तुम भी करो। जरूर कुछ मिल जाएगा।

हमें समझते देर न लगी कि वाकई भाईसाहब बड़े धांसू ब्लाॅगर बन गए हैं। जो एक दिन में ही यह भूल गए कि जो उन्होंने ब्लाॅग पर डाला है। उसे महीने पर पहले लिखकर तैयार किए बैठे थे। लेकिन फाॅण्ट कनवर्ट करना नहीं आ रहा है। सो लंबे समय से मैटर तैयार होने के बावजूद हरी भजन करने को मजबूर थे। इस इंतजार मंे कि हनुमान आएंगे अवतार लेकर और कर देंगे चमत्कार फाण्ट बदलने का।

धांसू ब्लाॅगर अपने परम प्रियों मंे से एक हैं। जितना अपुन उन्हें मानते हैं वह भी अपुन को उतना ही मानते हैं। उम्र मंे कुछ बड़े हैं और कुछ अच्छा-बुरा समय साथ-साथ एक छत के नीचे बिताए हैैं। अपुन को पता चला कि भाई का ब्लाॅग बनना है। सो जुट गए फाण्ट कनटर्वर कबाड़ने में। कुछ मगजमारी की। और सफल भी हो गए। और मेल से कनवर्टर का फंडा भाई के सुपुर्द कर दिया। भाई ने तुरंत थैंक्यू वैंक्यू बोलकर अपना भी फर्ज निभा दिया और हमें चलता किया। बात खत्म।इस घटना के दूसरे ही दिन गुरू से हमने रंगीन फाण्ट का फंडा पूछा तो पता चला वह अब वह नहीं है। भलां सिंह, भलां कुमार बन गए हैं। मुबारक हो भाई। अच्छा फण्डा है।

3 टिप्‍पणियां:

मधुकर राजपूत ने कहा…

यही ज़माना है। लुंच धीरे धीरे गुरू बनकर भड़ैंती फान देते हैं कि उन्होंने तो फलां आविष्कार किया है। तुम्हें बहुत मेहनत करनी पड़ेगी सीखना पड़ेगा। बढ़िया खाल खींची है। अब छप्पर पर डालकर सुखा दो।

Sunil Maurya ने कहा…
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Sunil Maurya ने कहा…

ब्लॉग में वाकई में सीखने को कुछ नहीं है। लेकिन जब एक पुराना ब्लॉगर कुछ जानकारी पूछ बैठे। बड़ा अजीब लगता है। अक्सर वह जवाब देता है कि ब्लॉग उसकी ऐसी-तैसी कर डाली। कई अखबार वालों की चीर-फाड़ कर दी। बावजूद इसके छोटी सी बात पूछ बैठे जनाब। अब हंसी नहीं आई। इतना जरूर हुआ कि खुद की पीठ थपथपा सकते हैं। सो, थपथपा लिया। अब जनाब लिखते हैं कि पहले से मैटेरियल तैयार था उस नए-नए कथित धांसू ब्लॉगर का। तो यह गलत फहमी है। दो पेज का मैटर जरूर तैयार था। इसके बाद फॉन्ट कनवर्ट नहीं होने से उंगलियां थम गई। जनाब ने कनवर्टर भेज कर अहसान किया। बदले में थैंक्यू का प्यारा जवाब भी मिला। लेकिन उन्हें शायद नहीं पता कि जिस दिन मैटर तैयार किया उस दिन कई घंटे तक लगातार उंगलियां की-बोर्ड पर अंगड़ाई लेती रहीं। थमी उसी समय जब दिमाग में भरा चार साल से स्पेशल कचरा कंप्यूटर स्क्रीन पर नहीं आ गया। शायद यकीन नहीं होगा लेकिन उस दिन पूरे 38 हजार 935 कैरेक्टर टाइप किया। इसके अलावा पुराने लिखे हुए कचरे को भी सहेजा। कुछ चेंज किया। अब....तक तो आप समझ गए होंगे कमेंट करने वाला ही वह कथित धांसू ब्लॉगर है..... वाकई में है या नहीं....आप जानों....मेरा ब्लॉग है www.nitharikasuch.blogspot.com