मंगलवार, 12 जनवरी 2010

गरीब गुरबा गोबर बुद्धि

राहुल कुमार

प्रेमचंद की महान कृति गोदान का नायक गोबर कहता है कि जिस पैर के नीचे गरीब का गला दबा हो उसे सहलाना ही बेहतर है। गोबर गरीबों की मजबूरी को मार्मिक ढंग से उजागर करता है। लेकिन समय के बदले परिदृश्य मंे अब गरीब गरीब नहीं रहा है। हां, उसे गोबर बुद्धि जरूर समझा जा रहा है। ऐसी गंगा जिसमें सारे पाप धुल जाते हैं। जिसके नाम पर करोड़ों की हेर-फेर हो जाती है। इस गोबर बुद्धि को पता भी नहीं चलता और उस काले धन का ढेला भर भी इसकी अंटी मंे नहीं डाला जाता। यह फक्कड़ अपनी फटी वेशभूषा और सूखी रोटी में ही मस्ताता रहता है। दुनिया इसके नाम पर कुछ भी हासिल कर ले। बांगडू गरीब-गुरबा, गोबर बुद्धि को फर्क नहीं पड़ता। हजारों कमजर्फ शरणार्थियों को शरण दे देता है जो बदले में इसे कुछ नहीं देते।

पिछले दिनों चारों खाने चित्त हुई और अपना हलक सूखाकर पानी मांग बैठी भाजपा भी इस गरीब-गुरबा की शरण में आकर सत्ता सुख पाने की चाह मंे है। अपना अस्तित्व बचाने के बावस्ता इस धूर्त पार्टी के एक बुद्धिजीवी ने गोबर बुद्धि को जगाने की बांग दी है। हिंदूत्व, संस्कृति, संस्कार, जब वोट बैंक नहीं बचा सकें तो पार्टी के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष गडकरी ने गरीबों की सेवा करने की ठान ली है। शायद यहां भाजपा की कामचोरी छुप जाए। अपनों कंधों पर भाजपा को नया जीवन देने की जुगत में जुटे गडकरी गरीब-गुरबा की कमान पर तीर चलाने की राजनीति पर उतर आए हैं। पट्टे ने अध्यक्ष बनने के बाद हुई पहली बैठक में ही पासा फेंक दिया कि सेवा प्रकल्प का निर्माण किया जाएगा। जो गांव-गांव जाकर गरीबों की सेवा करेगी। आत्महत्या कर चुके किसानों की विधवाओं को सांत्वना देकर हरसंभव मदद करेगी। महिलाओं के विकास को मुद्दा बनाएगी। और उन्हें पार्टी से जोड़ेगी।

जैसे इससे पहले कभी गरीब थे ही नहीं। 1980 मंे गठित हुई इस पार्टी की आंखें अब तक मुंदी थीं कि गरीब इससे पहले दिखाई नहीं दिए। हां, आज उसकी गोबर बुद्धि जरूर टिप रही है। जिसकी सहायता से खोया सुख पाने की कवायद मंे जुटी गई है पार्टी। जैसे न इससे पहले महिलाएं थीं और न ही किसानों की विधवाएं। यह गोबर बुद्धि भाजपा ही नहीं कथित समाजसेविओं की भी बड़ी हितैषी है। जो इसके नाम पर बड़े-बड़े स्वयंसेवी संगठन बना बैठे हैं। और खूब पैसा कूट रहे हैं। गोबर बुद्धि उन एनआरआई ओं की भी बड़ी सहयोगी है जो अकूत संपत्ति से उकता आते हैं और समाजसेवा करने का कीड़ा उनके उनकी में कुलबुलाने लगा है। कुछ कंबल बांट कर और शौचालय बना कर धर्मार्थी बन गए हैं।

इस गरीब को अपनी किस्मत से कोई लेना देना नहीं है। चंपक को गोबर मंे ही स्वर्ग नजर आता है। कितने ही सहृदय परोपकारी इसे सुधारने व उद्धार करने आते हैं लेकिन यह आलसी वहीं का वहीं पड़ा है। कितने ही मंत्रियांे ने गरीबी हटाने की योजनाएं बनाईं। कागजों पर खूब पैसा बहाया। लेकिन यह गरीब बुद्धि गोबर से बाहर निकलने का नाम ही नहीं लेती। अब भाजपा ने इसकी मदद करने का बीड़ा उठाया है। परंतु देखना कमबख्त सुधरेगा नहीं। जस का तस बना रहेगा। बांगडू कहीं का।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

आप भी किन्हें लेकर बैठ गए