गुरुवार, 11 नवंबर 2010

ऊपरी कमाई और दहेज का लगेज

राहुल यादव

अब से पहले मैंने इतने खुले रूप में कभी नहीं जाना था कि मेरे आस पास जो चेहरे हंै उनका मन ऐसा भी है। उसकी सोच और चीजों को स्वीकार करने की विवशता बदतर दर्जे तक जा पहुंची है। बड़े भाई का सिलेक्शन मध्य प्रदेश सिविल सर्विस के लिए हो गया है। कड़ी मेहनत और मशक्कत के बाद वह सूबे में एक जिम्मेदार पद पर तैनाती पा गए हैं। खुशी बहुत है लेकिन समाज, गांव, रिश्तेदार, दोस्त आदि से मिली प्रतिक्रियाओं ने एक तरह से हिला कर रख दिया।

कल तक नौकरशाही को कोसने वाले आज सिर्फ ऊपरी कमाई और दहेज के लगेज की बात कर रहे हैं। गुणा भाग लगाकर यह जोडऩे में लगे हैं कि प्रत्येक महीने ऊपर की कमाई कितनी होगी। पिता जी स्कूल के लिए जाते हैं तो रास्ते में भले लोग रोक लेते हैं। पिता जी को बताते कि लड़का जिस पद को पा गया है उस पर 10 हजार रोज की ऊपरी आमदनी है। अगर थोड़ी जोर जबर्दस्ती करेगा तो 20 से 25 हजार रुपये तक कमा सकता है। मास्टर साहब आप तो करोड़ पति हो गए हो। वाकई आपने अच्छे संस्कार दिए बच्चों को।

पूरे समाज और दोस्तों में यही अटकलें हैं कि कितना कमाएगा। किसी ने वेतन के बारे में पूछा तक नहीं। ऊपरी कमाई उन्हें इस पद का सबसे जायज हक लग रही है। एक पल भी किसी के चेहरे पर यह ऊपरी कमाई समाज को खोखला बनाने वाली रिश्वतखोरी और गिरते ईमान की निशानी नहीं लगी। किसने इनसे बच रहने की नेक सलाह नहीं दी।

सभी ने इस खोरी को बेहद खूबसूरती के साथ स्वीकार कर लिया है। जैसे सिविल सर्विस में सिलेक्ट होने का सबसे पहला हक ऊपरी कमाई करना ही है। जिन शिक्षकों ने पढ़ाया, जिन्होंने समाज को सुधारने की तथाकथित जिम्मेदारी कंधों पर उठा रखी है, जिन्होंने मोह माया छोड़कर भगवा धारण कर लिया है, पिता जी ऐसे ही कई शुभचिंतकों ने ऊपरी कमाई का पूरा खाका खींच दिया है। हिसाब लगा लगाकर बता दिया है कि इतने साल में कितनी कोठी बन जाएंगी। कुछ ने तो कोठी किस शहर में बनाई है, तक की योजना बनाकर दे दी है।

ये सब दिवाली की छुट्टिïयों पर देखने का मिला। पीएससी का रिजल्ट दिवाली से एक सप्ताह पहले ही आया और मैं अपनी अखबारी दुनिया से छुटï्टी लेकर दिल्ली से दिनारा अपने घर पहुंचा था। पूरे वाकये में किसी ने ईमानदारी से काम करने, स्वाभिमान बनाए रखने और समाज व गरीबों के लिए कुछ अच्छा काम करने की बात मुंह से नहीं निकाली। आइडिया देने की समझदारी तो दूर।

यह देखकर हैरत लगी कि समाज में किस हद पर ऊपरी कमाई की स्वीकारोक्ति समा गई है। अब रिश्वत मांगने वाले भ्रष्टï नहीं है और न ही यह क्रिया भ्रष्टïाचार। सब कुछ जायज है। लेना। देना। सोचता रहा इन लोगों की नजर में वह लोग कितने बेवकूफ हैं जो भ्रष्टïाचार के खिलाफ लडऩे की बात कहते हैं। शायद वह खुद बेवकूफ बन रहे हैं और उन्हें खबर तक नहीं।

यहीं नहीं ऊपरी कमाई के बाद सबसे खास मुद्दा है कि शादी में कितना रुपया मिलेगा। लड़की वाले कम से कम 30 लाख तो देंगे ही। विधायक, मंत्री या कोई बड़ा अधिकारी ही अपनी बिटिया ब्याहेगा। ढेरों अटकलें। ढेरों आइडियाज। लड़का बड़ा अधिकारी बन गया। अब तो कमाई ही कमाई है? वह इसका हकदार भी है ? कुर्सी जो पा गया है ?

1 टिप्पणी:

Harsh ने कहा…

kya chachau bahut dino baad likhna shuru kiya kya baat