शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

शहर ठंडा पड़ा है

राहुल यादव
परेशान है आज वह, फिर बेहद
करता है मन इस शहर पर थूकने का
बड़ी उबकाई आती है इस शहर पर
कैसा ठंडा पड़ा है, कमबख्त
कहीं कुछ भी तो नहीं होता
क्या मुंह लेकर जाएगा आज ऑफिस
क्या कह देगा कि कोई नहीं मरा
सारे बदमाश कायर हो गए हैं
वह बेहद गंभीर, डरा हुआ है
दुआ पर दुआ किए जा रहा है
मन ही मन सोचता है
अरे बदमाशों कुछ तो करो
कहीं रेप कर दो, लूट लो किसी को
उतार लो गले से किसी के चेन
तोड़ ही डालो, किसी के घर का ताला
खींच लो किसी लड़की का दुपट्टा
उठा ले जाओ किसी मासूम को
मांग डालो मनमाफिक फिरौती
मत रहने दो, ठंडा इस शहर को
अच्छा नहीं लगता, सौहार्द हमको
शराब पीकर ही मचा दो उत्पात
मार दो चाकू किसी के पेट में
जला ही दो किसी गरीब की दुकान
सुबह से शाम होने को है
सड़क पर दौड़ते - भागते
आज कुछ नहीं मिला
क्या मुंह लेकर जाएगा ऑफिस
शहर का ठंडा पन नहीं भाता हमें
हमारी मजबूरी है, हम रिपोर्टर हैं
शांति और सुख, खबर नहीं बनती
सनसनी चाहिए सिर्फ सनसनी
अखबार बिकता है, टीआरपी बढ़ती है
तभी भनभनाता है उसका फोन
दूसरे छोर से आती है बहन की आवाज
बहुत खुश होता है
वह पूछता है परिजनों की खैरियत
मां, बाबू जी, भाई, भाभी
करता है भगवान का शुक्रिया
फिर चल देता है अरे कमबख्त
कुछ तो करो
ठंडा हो शहर अच्छा नहीं लगता
क्या मुंह लेकर जाएगा ऑफिस
लेकिन भूल जाता है वह
अपनी धुन में
उस शहर में भी है
किसी अखबार का ऑफिस
चलता है कोई खबरिया चेनल
जन्हा रहते है उसके घरवाले
वहा भी कोई दुआ करता होगा

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

bohot khoob kaha dost...wahan bhi to karta hoga koi dua....uff...aisi dua !

bohot badhiya andaaz

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

aapki kavita me aapka pesha jhalak raha hai.....aur bahut pyare dhang se sanjoya aapne:)