सोमवार, 17 जनवरी 2011

आंदोलन तेज हैं

राहुल यादव
देश में आंदोलन तेज हो चले हैं। हर क्रिया पर प्रतिक्रिया होती है। राहुल गांधी का रास्ता लखनऊ में रोका जाता है तो विरोधियों के पुतले दिल्ली में फूंक दिए जाते हैं। वाराणसी में सभाएं हो जाती हैं। गजब की तेज नजर हो गई है लोगों की। हर बात पर आंदोलन कर देते हैं। अब कुछ भी चुप रहकर नहीं सहते हंै लोग। हर गली कूचे से आवाज उठने लगी है।

सोनिया गांधी पर किताब ऐसी क्यों लिखी। फलां फिल्म में फलां डायलॉग व सीन क्यों है। मुन्नी बदनाम क्यों है। बंद करो। शीला की जवानी देश को गर्त में ले जा रही है। बंद करो। चीयर लीडर्स नंगा नाच है। बंद करो। राजधानी ही नहीं छोटे शहर में भी आक्रोश है, ऐसे मुद्दों को लेकर। खूब बवाल काटा जा रहा है। अब मनमानी करना मुश्किल है।

आंदोलन तेज है, भगवा आतंकवाद शब्द नहीं सहेंगे। मुस्लिम आतंकवाद चलता रहने दो। देश सिर्फ हिंदुओं का है और पंथ निरपेक्ष भी है। आंदोलन तेज है। बेहद तेज। उनके लिए देश की हर गली कूचे में अगुआ पैदा हो गए हैं। हर मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हैं। पुतले जलाए जाते हैं, हड़तालें की जा रही हैं। सहयोग व कार्य बहिष्कार किया जाता है। सड़कें जाम कर, ट्रेनें रोककर बंद की घोषणा की जाती है। सामान्य जन जीवन को अस्त व्यस्त कर दिया जाता है। आंदोलन तेजी से चलते हैं।

महंगाई नहीं सहेंगे। बड़े बड़े फोटो के साथ स्थानीय नेता स्थानीय महंगाई के खिलाफ सड़क पर आता है। मुद्दों को लेकर वह सजग है। अखबार में छपता है। ताकि सभी देख सकें। फोटोग्राफर के आने पर हाथ की दो अंगुलियां भी मुस्कुराते हुए ऊपर उठा देता है। वह गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है। देश में अब चुप रहकर कुछ नहीं सहा जाता है। आंदोलन तेज हैं।

आंदोलन तेज हैं क्योंकि देश में मुद्दे बहुत हैं। यह मुद्दे भी अजर और अमर हैं। क्योंकि हर आंदोलन समझदार है। वह मुद्दे खत्म नहीं करता। उन्हें संभालकर रखता है। ताकि वक्त आने पर फिर से उठाए जा सकें। अगर मुद्दे का हल निकल गया तो फिर किस चूल्हे पर रोटी सेंकी जाएगी। गली का नेता कस्बे का, फिर जिले का और फिर प्रदेश स्तर का होते हुए देश का नेता कैसे बनेगा। इसलिए मुद्दे बनाए रखना ही आंदोलन है। समझदार आंदोलन का निष्कर्ष मुद्दे की समाप्ति नहीं है। वरन उसे चला कर कुछ मुनाफा उठाना है।

महंगाई के खिलाफ आंदोलन होता है स्थानीय नेता को प्याज मुफ्त में मार्केट असोसिएशन पहुंचाती है। वह जमाखोरी के मुद्दे को बचाकर रख लेता है। परिजन पब्लिक स्कूलों की मनमानी फीस के खिलाफ खड़े होते हैं तो पैरंट्स असोसिएशन का अध्यक्ष अपनी मर्जी से कुछ एडमिशन करा लेता है स्कूलों में। भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसान लाठी भांजते हैं तो स्थानीय नेता को इलाके के कई ठेके मिल जाते हैं। कोठियां बन जाती हैं और पिस्टल लाइसेंस के साथ कई गाडिय़ों का काफिला चलने लगता है उसके साथ।

अब आंदोलन सिर्फ चलने के लिए होते हैं। सब समझते हैं बस आम आदमी नहीं समझता। आंदोलन सिर्फ इसलिए चलते हैं कि कोई आंदोलन न हो। अब आंदोलन ही आंदोलन को रोकने के लिए हैं। आंदोलन तेज हैं कि आम आदमी उकता कर वाकई सड़क पर न उतर आए। कोई बड़ा आंदोलन न हो जाए। इसलिए मुन्नी की बदनामी, शीला की जवानी, सोनिया की साड़ी, राहुल के रुके रास्ते पर आंदोलन चलने दो। रोज चलने दो। अखबार में छपने दो। आंदोलन तेज हैं।

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

बहुत दिनों बाद लिखा है। कहां गायब हो चले थे राहुल जी। बहुत अच्छा। अब आंदोलन नहीं सिर्फ प्रतिक्रिया है।